chandrayaan-3: चांद पर उड़ान भर रहा भारत, याद आ रहे मिसाइल मैन
आज भारत चंद्रयान-3 मिशन को लॉन्च करेगा। अगर ये मिशन सफल होता है तो भारत स्पेस जगह में एक नया मुकाम हासिल करेगा। एक तरफ जहां पूरे देश की नजरें चंद्रयान-3 पर टिकी हैं, वहीं दूसरी और मिसाइलमैन डॉ अब्दुल कलाम को भी याद किया जा रहा है।
आज भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में नया इतिहास लिखने जा रहा है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारतीय स्पेस एजेंसी यानी इसरो चंद्रयान-3 मिशन को लॉन्च करेगा। चंद्रयान के लॉन्च होने का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। लगभग सारी तैयारियां पूरी हो गई हैं। फ्रांस दौरे पर गए पीएम मोदी से लेकर देश के हर एक आम-आदमी के मन में चांद पर भारत के इस खास मिशन को लेकर उत्सुकता है। भारत ही नहीं दुनियाभर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की इस पर नजर है। लेकिन इस दौरान भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के नाम से मशहूर वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की भी याद आ रही है। भारत का पहला रॉकेट नाइक अपाचे डॉ. कलाम के नेतृत्व में छोड़ा गया। आज तो इसरो के पास काफी एडवांस टेक्नोलॉजी है, लेकिन उन्होंने दशकों पहले कम संसाधनों से ही अंतरिक्ष की दुनिया में भारत की पावर दिखाई।
1980 में रोहिणी सैटेलाइट को स्पेस में भेजा
कलाम साहब को भारत के मिसाइल प्रोग्राम का भी जनक माना जाता है। जिस वक्त भारत गरीबी जैसी समस्याओं का सामना कर रहा था, उस वक्त उन्होंने भारत की अंतरिक्ष शक्ति के माध्यम से दुनिया से लोहा मंगवाया। 1980 के दशक में शायद ही कोई भारत के सैटेलाइट लॉन्च करने और स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र के बारे में सोचता है, लेकिन डॉ कलाम ने भारत के स्पेस प्रोग्राम की सूरत ही बदल दी। उन्हें इसरो का प्रोग्राम डायरेक्टर बनाया गया। उन्होंने खुद ग्राउंड पर जाकर एसएलवी (SLV) का निर्माण करवाया। जुलाई 1980 में SLV III ने रोहिणी सैटेलाइट को पृथ्वी के निकट की ऑर्बिट में इंजेक्ट किया, जिससे भारत स्पेस क्लब का सदस्य बन गया।
कई बैलिस्टिक मिसाइलों का किया सफल परीक्षण

उन्होंने SLV प्रोग्राम की सफलता के बाद इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर बैलिस्टिक मिसाइलों को बनाना शुरू किया। उनके नेतृत्व में ही 1988 में पृथ्वी मिसाइल, साल 1985 में त्रिशूल मिसाइल और 1998 अग्नि मिसाइल का परीक्षण किया गया। उन्होंने 1998 में सोवियत संघ (Russia) के साथ सहयोग करके सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल पर काम करना शुरू किया और इसी दौरान ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड को भी स्थापित किया गया।
डॉ साराभाई के साथ किया काम

आज जब हम मंगलयान और चंद्रयान जैसे मिशन को लॉन्च कर रहे हैं, इसका आधार भी डॉ कलाम की देन है। जिन ताकतवर रॉकेट की वजह से अंतरिक्ष में यान भेजे जाते हैं, उनके लॉन्च पैड से लेकर टेक्नोलॉजी तक डॉ कलाम के वक्त ही डेवलेप होना शुरू हुई थी। उन्होंने भारत के स्पेस प्रोग्राम के जनक डॉ विक्रम साराभाई के साथ काम किया। डॉ साराभाई, डॉ होमा भाभा और कलाम की तिगड़ी ने भारत के अंतरिक्ष विज्ञान जगत में कई माइलस्टोन बनाए।
भारत को दी परमाणु ताकत

डॉ कलाम ने न केवल स्पेस और मिसाइल प्रोग्राम में भूमिका निभाई। बल्कि उन्होंने देश को परमाणु शक्ति दी। भारत के परमाणु परीक्षण के पीछ भी उनकी ही इंटेलिजेंस थी। पोखरण परीक्षण के वक्त डॉ कलाम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वैज्ञानिक सलाहकार थे। वो इंदिरा गांधी को पोखरण परीक्षण की तैयारियों से लेकर आगे की योजना की जानकारी देते। ये परीक्षण बड़ी ही चतुराई के साथ हुआ। लेकिन आज भारत के पास बड़ी परमाणु शक्ति है इसलिए कोई बी दुश्मन हमसे टकराने की हिम्मत नहीं करता।